Sunday 10 February 2013

सफ़ेद दाग निवारक सरल उपचार

 सफ़ेद दाग निवारक  सरल उपचार 

                                                                                          
                              


       ल्युकोडर्मा चमडी का भयावह रोग है,जो रोगी की शक्ल सूरत प्रभावित कर शारीरिक के बजाय मानसिक कष्ट ज्यादा देता है। इस रोग में चमडे में रंजक पदार्थ जिसे पिग्मेन्ट मेलानिन कहते हैं,की कमी हो जाती है।चमडी को प्राकृतिक रंग प्रदान करने वाले इस पिग्मेन्ट की कमी से सफ़ेद दाग पैदा होता है।इसे ही श्वेत कुष्ठ कहते हैं।यह  चर्म विकृति पुरुषों की बजाय स्त्रियों में ज्यादा देखने में आती है।

         ल्युकोडर्मा के दाग हाथ,गर्दन,पीठ और कलाई पर विशेष तौर पर पाये जाते हैं। अभी तक इस रोग की मुख्य वजह का पता नहीं चल पाया है।लेकिन चिकित्सा के विद्वानों ने इस रोग के कारणों का अनुमान लगाया है।पेट के रोग,लिवर का ठीक से काम नहीं करना,दिमागी चिंता ,छोटी और बडी आंर्त में कीडे होना,टायफ़ाईड बुखार, शरीर में पसीना होने के सिस्टम में खराबी होने आदि कारणों से यह रोग पैदा हो सकता है।

         शरीर का कोई भाग जल जाने अथवा  आनुवांशिक करणों से यह रोग पीढी दर पीढी चलता रहता है।इस रोग को नियंत्रित करने और चमडी के स्वाभाविक रंग को पुन: लौटाने हेतु कुछ घरेलू उपचार कारगर साबित हुए हैं जिनका विवेचन निम्न पंक्तियों में किया जा रहा है--

१)    आठ लीटर पानी में आधा किलो हल्दी का पावडर मिलाकर तेज आंच पर उबालें, जब ४ लीटर के करीब रह जाय तब उतारकर ठंडा करलें  फ़िर इसमें आधा किलो सरसों का तैल  मिलाकर पुन: आंच पर रखें। जब केवल  तैलीय मिश्रण  ही बचा रहे, आंच से उतारकर बडी शीशी में भरले। ,यह दवा सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। ४-५ माह तक ईलाज चलाने पर  आश्चर्यजनक अनुकूल  परिणाम प्राप्त होते हैं।


२.) बाबची के बीज इस बीमारी की प्रभावी औषधि मानी गई है।५० ग्राम बीज पानी में ३ दिन तक भिगोवें। पानी रोज बदलते रहें।बीजों को मसलकर छिलका उतारकर छाया में सूखालें। पीस कर पावडर बनालें।यह दवा डेढ ग्राम प्रतिदिन पाव भर दूध के साथ पियें। इसी चूर्ण को पानी में घिसकर पेस्ट बना लें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। अवश्य लाभ होगा। दो माह तक ईलाज चलावें।

3) बाबची के बीज और ईमली के बीज बराबर मात्रा में लेकर चार दिन तक पानी में भिगोवें। बाद में बीजों को मसलकर छिलका उतारकर सूखा लें। पीसकर महीन पावडर बनावें। इस पावडर की थोडी सी मात्रा लेकर पानी के साथ पेस्ट बनावें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर एक  सप्ताह तक लगाते रहें। बहुत ही  कारगर  उपचार  है।लेकिन  यदि इस पेस्ट के इस्तेमाल करने से सफ़ेद दाग की जगह लाल हो जाय और उसमें से तरल द्रव निकलने लगे तो ईलाज कुछ रोज के लिये  रोक देना उचित रहेगा।

4)  एक और कारगर  ईलाज   बताता  हुं--

        लाल मिट्टी लावें। यह मिट्टी बरडे- ठरडे और पहाडियों के ढलान पर अक्सर मिल जाती है। अब यह लाल मिट्टी और अदरख का रस बराबर मात्रा  में लेकर घोटकर पेस्ट बनालें। यह दवा प्रतिदिन ल्युकोडेर्मा के पेचेज पर लगावें। लाल मिट्टी में तांबे का अंश होता है जो चमडी के स्वाभाविक रंग को लौटाने में सहायता करता है। और अदरख का रस सफ़ेद दाग की चमडी में खून का प्रवाह बढा देता है।







५)   श्वेत कुष्ठ रोगी के लिये रात भर तांबे के पात्र में रखा पानी प्रात:काल पीना फ़ायदेमंद है।










6)  मूली के बीज भी सफ़ेद दाग की बीमारी में हितकर हैं। करीब ३० ग्राम बीज सिरका में घोटकर पेस्ट बनावें और दाग पर लगाते रहने से लाभ होता है। 

७) एक अनुसंधान के नतीजे में बताया गया है कि काली मिर्च में एक तत्व होता है --पीपराईन। यह तत्व काली मिर्च को तीक्ष्ण मसाले का स्वाद देता है। काली मिर्च के उपयोग से चमडी का रंग वापस लौटाने  में मदद मिलती है।

८)  चिकित्सा वैग्यानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सफ़ेद दाग रोगी में कतिपय विटामिन  कम हो जाते हैं।  विशेषत: विटामिन  बी १२ और फ़ोलिक एसीड की कमी पाई जाती है।  अत: ये विटामिन सप्लीमेंट लेना आवश्यक है। कापर और ज़िन्क तत्व के सप्लीमेंट की भी सिफ़ारिश की जाती है।

      बच्चों पर ईलाज का असर जल्दी होता है॥ चेहरे के सफ़ेद दाग जल्दी ठीक हो जाते हैं। हाथ और पैरो के सफ़ेद दाग ठीक होने में ज्यादा समय लेते है। ईलाज की अवधि ६ माह से २ वर्ष तक की हो सकती है।

दमा(अस्थमा) के सरल उपचार

 दमा(अस्थमा) के सरल उपचार.
                                                                              




  श्वास अथवा दमा श्वसन तंत्र की भयंकर कष्टदायी बीमारी है। यह रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।श्वास पथ की मांसपेशियों में आक्छेप होने से सांस लेने निकालने में कठिनाई होती है।खांसी का वेग होने और श्वासनली में कफ़ जमा हो जाने पर तकलीफ़ ज्यादा बढ जाती है।रोगी बुरी तरह हांफ़ने लगता है।


            एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ या वातावरण के संपर्क में आने से,बीडी,सिगरेट धूम्रपान करने से,ज्यादा सर्द या ज्यादा गर्म मौसम,सुगन्धित पदार्थों,आर्द्र हवा,ज्यादा कसरत करने और मानसिक तनाव से दमा का रोग उग्र हो जाता है।

            यहां ऐसे घरेलू नुस्खों का उळ्लेख किया जा रहा है जो इस रोग ठीक करने,दौरे को नियंत्रित करने,और श्वास की कठिनाई में राहत देने वाल सिद्ध हुए हैं--

१) तुलसी के १५-२० पत्ते पानी से साफ़ करलें फ़िर उन पर काली मिर्च का पावडर बुरककर खाने से दमा मे राहत मिलती है।



२) एक केला छिलका सहित भोभर या हल्की आंच पर भुन लें। छिलका उतारने के बाद काली मिर्च का पावडर उस पर बुरककर खाने से श्वास की कठिनाई तुरंत दूर होती है।






३) दमा के दौरे को नियंत्रित करने के लिये हल्दी एक चम्मच दो चम्मच शहद में मिलाकर चाटलें।







४)  तुलसी के पत्ते पानी के साथ पीस लें ,इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।

५)  पहाडी नमक सरसों के तेल मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से फ़ोरन शांति मिलती है।


६)   मैथी के बीज १० ग्राम एक गिलास पानी मे उबालें तीसरा हिस्सा रह जाने पर ठंडा करलें और पी जाएं। यह उपाय दमे के अलावा शरीर के अन्य अनेकों रोगों में फ़ायदेमंद   है।










७)  एक चम्मच हल्दी एक गिलास दूध में मिलाकर पीने से दमा रोग काबू मे रहता है।एलर्जी नियंत्रित होती है।










८)  सूखे अंजीर ४ नग रात भर पानी मे गलाएं,सुबह खाली पेट खाएं।इससे श्वास नली में जमा बलगम ढीला होकर बाहर निकलता है।









९)  सहजन की पत्तियां उबालें।छान लें उसमें चुटकी भर नमक,एक चौथाई निंबू का रस,और काली मिर्च का पावडर मिलाकर पियें।दमा का बढिया इलाज माना गया है।







१०)  शहद दमा की अच्छी औषधि है।शहद भरा बर्तन रोगी के नाक के नीचे रखें और शहद की गन्ध श्वास के साथ लेने से दमा में राहत मिलती है।


















११)  दमा में नींबू का उपयोग हितकर है।एक नींबू का रस एक गिलास जल के साथ भोजन के साथ पीना चाहिये।










१२)  लहसुन की  ५  कली चाकू से बारीक काटकर  ५० मिलि दूध में उबालें।यह मिक्श्चर सुबह-शाम लेना बेहद लाभकारी है।

१३)-अनुसंधान में यह देखने में आया है कि आंवला दमा रोग में अमृत समान गुणकारी है।एक चम्मच आंवला रस मे दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से फ़ेफ़डे ताकतवर बनते हैं। 

14) दमे का मरीज उबलते हुए पानी मे अजवाईन डालकर उठती हुई भाप सांस में खींचे ,इससे श्वास-कष्ट में तुरंत राहत मिलती है।

१५) लौंग ४-५ नग लेकर १०० मिलिलिटर पानी में उबालें आधा रह जाने पर छान लें और इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर गरम गरम पीयें। ऐसा काढा बनाकर  दिन में तीन बार पीने से रोग नियंत्रित होकर दमे में आशातीत लाभ होता है।

१६) चाय बनाते वक्त २ कली लहसुन की पीसकर डाल दें। यह दमे में राहत पहुंचाता है। सुबह-शाम पीयें।

गंजापन के सरल उपचार

  गंजापन  के सरल उपचार               

                                                                                






 गंजेपन एक आम समस्या बन गई है,चाहे महिला हो या पुरुष, ये समस्या दोनों को हो सकती हैं. गंजापन को एलोपेसिया भी कहते हैं. जब असामान्य रूप से बहुत तेजी से बाल झड़ने लगते हैं तो नये बाल उतनी तेजी से नहीं उग पाते या फिर वे पहले के बाल से अधिक पतले या कमजोर उगते हैं. ऐसे में आगे जाकर गंजे होने की संभावना अधिक हो जाती है.।

कारण--





  बालों का गिरना या झड़ना एक गंभीर समस्या है. बालों के झड़ने अथवा गंजेपन के कई कारण है जैसे बालों की जड़ों का कमजोर हो जाना, पिट्यूटरी ग्लैंड(पियूस ग्रंथि) में हार्मोन्स की कमी, सिर पर रुसी की अधिकता, बालों की जड़ों में पोषक तत्वों की कमी, क्रोध, शोक, चिंता, अधिक मानसिक परिश्रम, अधिक गरम भोजन, सिर में बढ़ती गर्मी, भोजन में विटामिंस मिनिरल्स, रेशा एवं आभ्यंतर रस हार्मोन्स की कमी, लगातार सिर दर्द रहने से रक्त संचार में कमी, भोजन का सही ढंग से न पचना, सिर के स्नायुओं में प्राण प्रवाह की कमी.

गंजापन की चिकित्सा--



  हमारे भोजन में कतिपय ऐसे मिनरल्स  पाये जाते हैं जिनका गंजापन विरोधी प्रभाव होता है।


 यहां हम ऐसे ही भोजन तत्वों का विवरण  प्रस्तुत करते हैं--

   सबसे महत्वपूर्ण तत्व  जो गंजापन  दूर कर सकते हैं वे हैं- जिंक,कापर ,लोह तत्व और सिलिका.

  जिंक में गंजापन नष्ट करने वाले तत्व पाये जाते हैं। केले,अंजीर,बेंगन ,आलू और  स्ट्राबेरी में जिंक की संतोषप्रद मात्रा निहित होती है।

कापर तत्व हमारे इम्युन सिस्टम को को मजबूत करते हुए बालों की सुरक्षा करता है। रक्त में हेमोग्लोबिन की वृद्धि के लिये कापर  सहायता करता है। दालें,सोयाबीन और वालनट आदि में कापर तत्व पाया जाता है।

लोह तत्व बालों की सुरक्षा और पोषण  के लिये आवश्यक है। मटर,गाजर, चिकोरी, ककडी, और पालक में  पर्याप्त आयरन होता है।  अपने भोजन में इन्हें शामिल करना उचित है।

   सिलिका तत्व चावल और आम में मौजूद रहता है।

   गंजापन में उपयोगी अन्य उपचार-

     - उड़द की दाल को उबाल कर पीस लें। रात को सोते समय इस पिट्ठी का लेप सिर पर  कुछ दिनों तक करते रहने से गंजापन समाप्त हो जाता है।

मैथी का प्रयोग--


 मेथी को पूरी रात भिगो दें और सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाएं। उसके बाद बालों को धो लें इससे रुसी और सिर की त्‍वचा में जो भी समस्‍या होगी वह दूर हो जाएगी।मेथी में निकोटिनिक एसिड और प्रोटीन पाया जाता है जो बालों की जड़ो को प्रोषण पहुंचाता है और बालों की ग्रोथ को भी बढ़ाता है। इसके प्रयोग से सूखे और डैमेज बाल भी ठीक हो जाते हैं। 

हरा धनिया

हरे धनिए का लेप जिस स्थान पर बाल उड़ गए हैं, वहां करने से  बाल उगने  लगते हैं.।

     उपयोगी उपचार-

थोड़ी सी मुलहठी को दूध में पीसकर, फिर उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है.

केले का गूदा निकालकर उसे निंबू के रस में मिलाकर गंजवाले स्थान पर लगाने से बालों के उडने की समस्या में लाभ होता है।

अनार के पती पीसकर गंज-स्थल पर लगाने से गंज का निवारण होता है।

प्याज काटकर दो भाग करें। आधे प्याज को गंज वाले भाग पर ५ मिनिट रोज रगडें।  बाल आने लगेंगे।

मिर्गी रोगी की चिकित्सा ऐसे करें


मिर्गी से मुक्ति के सरल उपचार.


मिर्गी एक नाडीमंडल संबंधित रोग है जिसमें मस्तिष्क की विद्युतीय प्रक्रिया में व्यवधान पडने से शरीर के अंगों में आक्छेप आने लगते हैं। दौरा पडने के दौरान ज्यादातर रोगी बेहोंश हो जाते हैं और आंखों की पुतलियां उलट जाती हैं। रोगी चेतना विहीन हो जाता है और शरीर के अंगों में झटके आने शुरू हो जाते हैं। मुंह में झाग आना मिर्गी का प्रमुख लक्छण है।
    आधुनिक चिकित्सा विग्यान में मिर्गी  की लाक्छणिक चिकित्सा करने का विधान है और जीवन पर्यंत दवा-गोली पर निर्भर रहना पडता है। लेकिन रोगी की जीवन शैली में बदलाव करने से इस रोग पर काफ़ी हद तक काबू पाया जा सकता है।
      कुछ निर्देश और हिदायतों का पालन करना मिर्गी रोगी और उसके परिवार जनों  के लिये परम आवश्यक है। शांत और आराम दायक वातावरण में रहते हुए नियंत्रित भोजन विधान अपनाना बहुत जरूरी है।
     भोजन भर पेट लेने से बचना चाहिये। थोडा भोजन कई बार ले सकते हैं।
           रोगी को सप्ताह मे एक दिन सिर्फ़ फ़लों का आहार लेना उत्तम है। थोडा व्यायाम करना भी जीवन शैली का भाग होना चाहिये।
   मिर्गी रोगी की चिकित्सा ऐसे करें---
  १) अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।









२) एप्सम साल्ट मिश्रित पानी से मिर्गी रोगी स्नान करे। इस उपाय से दौरों में कमी आ जाती है और दौरे भी ज्यादा भयंकर किस्म के नहीं आते है।


३)  मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।

४) विटामिन ब६ (पायरीडाक्सीन) का प्रयोग भी मिर्गी रोग में परम हितकारी माना गया है। यह विटामिन गाजर,मूम्फ़ली,चावल,हरी पतीदार सब्जियां और दालों में  अच्छी मात्रा में पाया जाता है। १५०-२०० मिलिग्राम विटामिन ब६ लेते रहना अत्यंत हितकारी है।

५)  मानसिक तनाव और  शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।

6)  मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदे के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आलमाएं।

7)  रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।

8) पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से  एक है। इसमें पाये जाने वाले  पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।

९)  १०० मिलि दूध में इतना ही पानी मिलाकर उबालें  दूध में लहसुन की ४ कुली चाकू से बारीक काटक्रर डालें ।यह मिश्रण रात को सोते वक्त पीयें कुछ ही  रोज में फ़ायदा नजर आने लगेगा।

१०) गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।

११) होम्योपैथी की औषधियां मिर्गी में हितकारी सिद्ध हुई हैं।कुछ होम्योपैथिक औषधियां  है-- क्युप्रम,आर्टीमेसिया,साईलीशिया,एब्सिन्थियम,हायोसायमस,एगेरिकस,स्ट्रामोनियम,कास्टिकम,साईक्युटा विरोसा,ईथुजा.    इन दवाओं का  लक्छण के मुताबिक उपयोग करने से मिर्गी से मुक्ति पाई जा सकती है।

१२)    निम्न मंत्र का विधिपूर्वक उच्चारण करने से मिर्गी रोग नष्ट होने की बात मंत्र चिकित्सा सिस्टम में उल्लेखित है।यह मंत्र १०,००० बार जपने से सिद्ध होता है। मंत्र शक्ति में विश्वास रखने वाले यह उपाय अवश्य आजमाएं।
"ओम हाल हल मंडिये पुडिये श्री रामजी
फ़ूंके वायु ,सुखे,सुख होई,ओम ठाह ठाह स्वाहा".

गठिया रोग सरल उपचार




     आमवात जिसे गठिया भी कहा जाता है अत्यंत पीडादायक बीमारी है।अपक्व आहार रस याने "आम" वात के साथ संयोग करके गठिया रोग को उत्पन्न करता है।अत: इसे आमवात भी कहा जाता है।
लक्षण- जोडों में दर्द होता है, शरीर मे यूरिक एसीड की मात्रा बढ जाती है। छोटे -बडे जोडों में सूजन का प्रकोप होता रहता है।
       यूरिक एसीड के कण(क्रिस्टल्स)घुटनों व अन्य जोडों में जमा हो जाते हैं।जोडों में दर्द के मारे रोगी का बुरा हाल रहता है।गठिया के पीछे यूरिक एसीड की  जबर्दस्त  भूमिका रहती है। इस रोग की सबसे बडी पहचान ये है कि रात को जोडों का दर्द बढता है और सुबह अकडन मेहसूस होती है। यदि शीघ्र ही उपचार कर नियंत्रण नहीं किया गया तो जोडों को स्थायी नुकसान हो सकता है।

गठिया के मुख्य कारण:--

महिलाओं में एस्ट्रोजिन हार्मोन की कमी होने पर गठिया के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

 अधिक खाना और व्यायाम नहीं करने से जोडों में विकार उत्पन्न होकर गठिया जन्म लेता है।

छोटे बच्चों में पोषण की कमी  के चलते उनका इम्युन सिस्टम कमजोर हो जाता है फ़लस्वरूप  रुमेटाईड आर्थराईटीज रोग पैदा होता है जिसमें  जोडों में दर्द ,सूजन और गांठों में अकडन रहने लगती है।

शरीर में रक्त दोष जैसे ल्युकेमिया होने अथवा चर्म विकार होने पर भी गठिया रोग हो सकता है।
थायराईड ग्रन्थि में विकार आने से गठिया के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।

आंतों में पैदा होने वाले रिजाक्स किटाणु  शरीर के जोडों  को भी दुष्प्रभावित कर सकते हैं।

           गठिया के ईलाज में हमारा उद्धेश्य शरीर से यूरिक एसीड बाहर निकालने का प्रयास होना चाहिये। यह यूरिक एसीड प्यूरीन के चयापचय के दौरान हमारे शरीर  में निर्माण होता है। प्यूरिन तत्व मांस में सर्वाधिक होता है।इसलिये गठिया रोगी के लिये मांसाहार जहर के समान है। वैसे तो हमारे गुर्दे यूरिक एसीड को पेशाब के जरिये बाहर निकालते रहते हैं। लेकिन कई अन्य कारणों की मौजूदगी से गुर्दे यूरिक एसीड की पूरी मात्रा पेशाब के जरिये निकालने में असमर्थ  हो जाते हैं। इसलिये इस रोग से मुक्ति के लिये जिन भोजन पदार्थो में पुरीन ज्यादा होता है,उनका उपयोग कतई न करें।   वैसे तो पतागोभी,मशरूम,हरे चने,वालोर की फ़ली में भी प्युरिन ज्यादा होता है  लेकिन इनसे हमारे शरीर के यूरिक एसीड लेविल पर कोई ज्यादा  विपरीत असर नहीं होता है। अत: इनके इस्तेमाल पर रोक नहीं है। जितने भी सोफ़्ट ड्रिन्क्स हैं सभी परोक्ष रूप से शरीर में यूरिक एसीड का स्तर बढाते हैं,इसलिये सावधान रहने की जरूरत है।

 १)  सबसे जरूरी और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मौसम के मुताबिक ३ से ६ लिटर पानी पीने की आदत डालें। ज्यादा पेशाब होगा और अधिक से अधिक विजातीय पदार्थ और यूरिक एसीड बाहर निकलते रहेंगे। 





२)  आलू का रस १०० मिलि भोजन के पूर्व लेना हितकर है।
















३) संतरे के रस में १५ मिलि काड लिवर आईल मिलाकर शयन से पूर्व लेने से गठिया में आश्चर्यजनक लाभ होता है।








४)  लहसुन,गिलोय,देवदारू,सौंठ,अरंड की जड ये पांचों पदार्थ ५०-५० ग्राम लें।इनको कूट-खांड कर शीशी में भर लें। २ चम्मच की मात्रा में  एक गिलास पानी में डालकर  ऊबालें ,जब आधा रह जाए तो उतारकर छान लें और ठंडा होने पर पीलें। ऐसा सुबह=शाम करने से गठिया में अवश्य लाभ होगा।



५) लहसुन की कलियां ५० ग्राम लें।सैंधा नमक,जीरा,हींग,पीपल,काली मिर्च व सौंठ २-२ ग्राम लेकर लहसुन की कलियों के साथ भली प्रकार पीस कर मिलालें। यह मिश्रण अरंड के तेल में भून कर शीशी में भर लें।  आधा या एक चम्मच दवा पानी के साथ दिन में दो बार लेने से गठिया में आशातीत लाभ होता है।






६) हर सिंगार के ताजे पती ४-५ नग लें। पानी के साथ पीसले या पानी के साथ मिक्सर में चलालें। यह नुस्खा सुबह-शाम लें ३-४ सप्ताह में  गठिया और वात रोग नियंत्रित होंगे। जरूर आजमाएं।






७)  बथुआ के पत्ते का रस करीब ५० मिलि प्रतिदिन खाली पेट पीने से गठिया रोग में जबर्दस्त फ़ायदा होता है। अल सुबह या शाम को ४ बजे रस लेना चाहिये।जब तक बथुआ  सब्जी मिले या २ माह तक  उपचार लेना  उचित है।रस लेने के आगे पीछे २ घंटे तक कुछ न खाएं। बथुआ के पत्ते काटकर आटे में गूंथकर चपाती बनाकर खाना भी हितकारी उपाय है।



 आयुर्वेदिक चिकित्सा भी कई मामलों मे फ़लप्रद सिद्ध हो चुकी है।

८) पंचामृत लोह गुगल,रसोनादि गुगल,रास्नाशल्लकी वटी,तीनों एक-एक गोली सुबह और  रात को सोते वक्त दूध के साथ २-३ माह तक लेने से गठिया में बहुत फ़ायदा होता है।

९) उक्त नुस्खे के साथ अश्वगंधारिष्ट ,महारास्नादि काढा और दशमूलारिष्टा २-२ चम्मच मिलाकर दोनों वक्त भोजन के बाद लेना हितकर है।

१०) चिकित्सा वैग्यानिकों का मत है कि गठिया रोग में हरी साग सब्जी का प्रचुरता से इस्तेमाल करना बेहद फ़ायदेमंद रहता है। पत्तेदार सब्जियो का रस भी अति उपयोगी रहता है।

11) भाप से स्नान करने और  जेतुन के तैल  से मालिश करने  से गठिया में  अपेक्षित लाभ होता है।

१२)  गठिया रोगी को कब्ज होने पर लक्षण उग्र हो जाते हैं। इसके लिये गुन गुने जल का एनिमा देकर पेट साफ़ रखना आवश्यक है।

१३) अरण्डी के तैल से मालिश करने से भी गठिया  का दर्द और सूजन कम होती है।

१४)  सूखे अदरक (सौंठ) का पावडर १० से ३० ग्राम की मात्रा में नित्य सेवन करना गठिया में परम हितकारी है।

१५) चिकित्सा वैग्यानिकों का मत है कि गठिया रोगी को जिन्क,केल्शियम और विटामिन सी  के सप्लीमेंट्स नियमित रूप से लेते रहना लाभकारी है।

१६)  गठिया रोगी के लिये अधिक परिश्रम करना या  अधिक बैठे रहना दोनों ही नुकसान कारक होते हैं। अधिक परिश्रम से अस्थिबंधनो को  क्षति होती है जबकि अधिक  गतिहीनता से जोडों में अकडन पैदा होती है।

  गठिया का दर्द दूर करने का आसान उपाय-

१७)    एक लिटर पानी तपेली या भगोनी में आंच पर रखें। इस पर तार वाली जाली रख दें। एक कपडे की चार तह करें और पानी मे गीला करके निचोड लें । ऐसे दो कपडे रखने चाहिये। अब एक कपडे को तपेली से निकलती हुई भाप पर रखें। गरम हो जाने पर यह कपडा दर्द करने वाले जोड पर ३-४ मिनिट रखना चाहिये। इस दौरान तपेली पर रखा दूसरा कपडा गरम हो चुका होगा। एक को  हटाकर दूसरा लगाते रहें। यह विधान रोजाना १५-२० मिनिट करते रहने से जोडों का दर्द आहिस्ता आहिस्ता समाप्त हो जाता है। बहुत कारगर उपाय है।

Saturday 9 February 2013

बढाएं सेक्स पावर



 कामेन्द्रिय को पुष्ट और ताकतवर बनाया जा सकता है और से़क्स का भरपूर आनंद लिया जा सकता है।मैं ऐसे ही कुछ प्रभावी  उपचार


१) लहसून की 2-3 कलियां कच्ची चबाकर खाने से सेक्स पावर बढता है। यह हमारे शरीर की  रोगों से लडने की ताकत बढाता है।  लहसुन उन लोगों के लिये भी हितकर है जो  अति सेक्स सक्रिय  रहते हैं।  इसके उपयोग से नाडीमंडल  तंदुरस्त रहता है  जिससे  अधिक सेक्स के  बावजूद थकावट मेहसूस नहीं होती है। लहसुन के नियमित उपयोग से स्वस्थ शुक्राणुओं का उत्पादन होता है।भोजन में भी लहसुन शामिल करें।

२) प्याज कामेच्छा जागृत करने और बढाने में विशेष सहायक  है। इससे लिंग पुष्ट होता है। एक प्याज कूट-खांडकर  मखन या देसी घी में तलें। इसे एक चम्मच शहद में मिश्रित कर  खाली पेट  खाएं। यह उपचार शीघ्र पतन,स्वप्नदोष और नपुंसकता में बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। भोजन मे कच्चा प्याज खाना हितकर है।
        उडद  की दाल का आटा  २०० ग्राम लें। इसे प्याज के रस में एक ह्फ़्ता  रखें। बाद में इसे सूखाकर  किसी बर्तन में भरकर रख दें। रोज खाली पेट १५ ग्राम  लेते रहने से  कामेच्छा बढती है और नपुंसकता  दूर होती है।






३) गाजर २०० ग्राम पीसलें।इसमें १५ ग्राम शहद और एक उबला अण्डा भी मिला दें। सहवास शक्तिवर्धक (aphrodisiac) बढिया नुस्खा है।




  


४) भिन्डी की जड का चूर्ण बनालें। यह चूर्ण १० ग्राम बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दूध में ऊबालकर पीने से नपुंसकता नष्ट होती है।

५) १५ ग्राम सफ़ेद मूसली की जड का पावडर एक गिलास गरम दूध के साथ दिन में दो बार पियें।शीघ्र पतन में लाभकारी है।








६) सहजन पेड की छाल का चूर्ण बनालें। यह चूर्ण ३० ग्राम मात्रा में शहद में मिलाकर चाट लें ।दिन मॆं दो बार लेना चाहिये।

७) मुनक्का ३० ग्राम गरम दूध से नित्य खावें। कब्ज मिटाकर सेक्स पावर बढाता है।








८) अखरोट और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर दिन में ३ बार एक माह तक लेने से पुरुषत्व बढता है।


९) अंकुरित अनाज,हरी सब्जियां, फ़ल और सूखे मेवे प्रचुरता से भोजन में ग्रहण करें। नपुंसकता निवारण में इसके महत्व को कम नहीं आंकना चाहिये।





१०) गोखरू और असगन्ध का चूर्ण बराबर मात्रा में शहद में मिलाकर नित्य लेने से इरेक्टाइल डिस्फ़न्क्शन का रोग दूर होकर स्तंभन शक्ति मे वृद्धि होती है।







११)  खारक सेक्स  परफ़ारमेंस उन्नत करने वाला सूखामेवा है। खारक,बादाम पिस्ता  बराबर मात्रा में मिलाकर  पीस कर चूर्ण बनालें। ५० ग्राम की मात्रा में नित्य पाव भर गरम दूध के साथ उपयोग करने से  नपुंसकता दूर होती है ।

१२)  उडद की दाल को  पानी के साथ पीसकर पिट्ठी बनालें।  कढाई में लाल होने तक भुनलें। इसे दूध में डालकर खीर बनालें। जरूरत के मुताबिक मिश्री भी डालें। यह खीर संभोग शक्ति बढाती है और शीघ्र पतन  का भी निवारण करती है। एक महीना प्रयोग करें।

१३)   सफ़ेद प्याज का रस और शहद १०-१० ग्राम लें, इसमें २ अंडे की जर्दी और २५ मिलि शराब मिलाकर रोज शाम को लेते रहने से संभोग शक्ति बढती है।

१४)  सौंठ, सतावर ,गोरखमुंडी थौडी सी हींग और शकर मिलाकर फ़ंकी लेकर  ऊपर से दूध पीने से  लिंग पुष्ट और सख्त होता है। वीर्य की वृद्धि होती है । शीघ्र पतन  में भी हितकारी है।

१५) वियाग्रा में नाईट्रिक ओक्साईड के प्रभाव में ईजाफ़ा करने के तत्व पाये जाते हैं। इससे लिंग की नसों(दोनों चेम्बर्स) में पर्याप्त रक्त भर जाता है और कठोर तनाव पैदा हो जाता है।इसे दिन में एक बार से ज्यादा नहीं लेनी चाहिये। हां , जो हार्ट के मरीज हैं और नाईट्रोग्लिसरीन दवा ले रहे हों वे वियाग्रा इस्तेमाल न करें क्योंकि इससे ब्लड प्रेशर अचानक गिर जाता है और रोगी मुसीबत में आ जाता है। प्रोस्टेट  वृद्धि रोग में टेम्सुलोसिन  अंग्रेजी दवा का उपयोग करने वाले भी वियाग्रा गोली इस्तेमाल न करें।

१६) पुरुषों के गुप्त रोगों में  हर्बल औषधि ज्यादा कारगर और निरापद होती हैं। वैध्य दामोदर  से 09826795656 पर संपर्क  किया जा सकता है।

    १७)     बेहतर सेक्स के लिये आपको ध्यान रखना होगा कि आपका वजन ज्यादा न हो। आपका खाना संतुलित हो और आप रोज कसरत करें।